नई दिल्ली। विश्व संस्था मुख्य मथक-न्यूयोर्क से प्रवाहित रामकथा के सांतवे दिन के संवाद में प्रवेश किया बापू ने कहा केवल में आपको सुनाने के लिए नहीं आया। आप तो निरंतर मुझे सुन रहे हैं। लेकिन अपना लक्ष्य है यहां के आसमान को सुनाने का, यहां के जल तत्व को सुनाने का, इस भूमि तत्व को, इस वायुमंडल को और प्रेमाग्नि के बदले वैराग्नि में सुलग रही है इस जलाने वाली अग्नि तत्व को सुनाने आया हूं। बापू ने कहा पर्टिकुलर यह कथा में मेरे श्रोता पंच तत्व है।भगवान करे यह गायन पहुंचे। सब कुछ होते हुए भी शांति क्यों नहीं आती?
बापू ने कहा तीन बात समझ में आती है: एक- शस्त्र से कभी शांति नहीं आएगी।शास्त्रों की स्थापना करनी पड़ेगी। शस्त्र से कैसे होगा क्योंकि जहां से विश्व शांति की बातें करते हैं वही शस्त्र बेंचते हैं।मूल में ही खोट है!
कभी-कभी शास्त्र उतरता है मनिषीओं की मनीषा से, हृदय के द्वारा उतरता है। और शास्त्र दिमाग में आता है। शास्त्र वाया हृदय नहीं आता तब शास्त्र शस्त्र बन जाते हैं। महाभारत में शस्त्र उठा। युद्ध के मैदान में भागवत गीता आई। रामायण में धर्मरथ आया। हमें विशेष शास्त्र की स्थापना करनी पड़ेगी दूसरा-हमारी बुद्धि में जब तक बेवकूफी होगी तब तक नहीं होगा। हमारी बुद्धि में बुद्धत्व प्रगटे। हम बेहोशी में है तब कोई भी प्रहार कर लेता है।
कोई कहता है कि हम जीते तो युद्ध दूसरे दिन बंद हो जाएगा और हम नहीं आए तो तीसरा विश्व युद्ध होगा!
बुद्धत्व का मतलब है जागृति, सावधानी। जब में बुद्धपुरुष बोलता हूं तो कई लोग कहते हैं बुद्धपुरुष की परिभाषा क्या है? बापू ने कहा मैंने कहीं बुद्ध पुरुष को सुना है, जाना है, त्रिभुवन दादा को देखे हैं तो मन में एक व्याख्या बनी है। बुद्धपुरुष के छह लक्षण होते हैं: एक-औदार्य-उदारता। बहुत ही उदारता, हम सह ना सके उतनी उदारता, दूसरा- सौंदर्य हो- सुंदरता,
तीसरा- माधुर्य- मधुरता, चौथा- गांभीर्य- गंभीरता, पांचवा-धैर्य-धीरता, छठा- शौर्य-शूरवीरता, और बापू ने कहा कि तीसरी बात है तिरस्कार से वसुधैवकुटुंबकम नहीं होगा, स्वीकार से ही होगा।। अपने स्वभाव का थोड़ा सुधार करो। विपत्ति को प्रभु का प्रसाद समझ कर सत्कार करना सीखो।स्वामी ने कहा है:उद्योग से भी हिंसा नहीं होनी चाहिए और आज हिंसा के उद्योग शुरू हुए हैं! बापू ने कहा कि साहस कर से इस जगह से कहता हूं: शस्त्र बेचना बंद कर दो।
कथा प्रवाह में सुंदर सदन से विवाह भूमि पर धनुष्य यग्य और सिताराम जी का विवाह प्रसंग का गान हुआ।।
परशुराम का आगमन-गमन और कन्या विदाय के बाद दशरथ के दरबार से विश्वामित्र मुनि का विदाय प्रसंग और बालकॉंड का समापन तक की कथा का गान हुआ।
वहीं, परमवंदनीय ग्रंथ श्रीरामचरितमानस द्वारा जन-जन को राममय करने के प्रेरणास्रोत गोस्वामी तुलसीदास जी के पावन जन्मजयंती के उपलक्ष्य पर मोरारी बापू के सान्निध्य में शीर्षस्थ विद्वतजनों व कथा गायकों की गरिमामय उपस्थिति में आयोजित श्री तुलसी जन्मोत्सव 2024 के अंतर्गत कैलास गुरुकुल, महुवा, गुजरात से सीधा प्रसारण देखिए 7 से 10 अगस्त, प्रातः 9:30 से 12:30 बजे एवं सायं 4:00 से 7:00 बजे और रत्नावली, तुलसी, व्यास एवं वाल्मीकि अवार्ड अर्पण समारोह 11 अगस्त, प्रातः 9:30 से 12:30 बजे केवल आस्था एवं संगीतनी दुनिया यूट्यूब चैनल पर।