हरिद्वार । पवित्र नगरी हरिद्वार, जहाँ गंगा की अविरल धारा बहती है और हिमालय मौन होकर देखता है, वहाँ 100 से अधिक साधकों ने ‘शून्य ~ द सीड्स ऑफ स्टिलनेस’ नामक पांच दिवसीय ध्यान शिविर में भाग लिया। यह अनूठा आर्टिस्टिक योग रिसर्च सेंटर में हिमालयन मास्टर एवं प्रख्यात योग गुरु डॉ. भरत ठाकुर के मार्गदर्शन में संपन्न हुआ। इस शिविर में प्रतिभागियों ने अपने भीतर की ओर यात्रा की – शांति, मौन और आत्म-बोध की खोज में।
वर्षों तक विश्व भर में योग के माध्यम से जीवन परिवर्तन का कार्य करने के बाद, डॉ. भरत ठाकुर ने अपनी जन्मभूमि भारत में लौटकर एक ऐसी साधना भूमि तैयार की, जहाँ योग सिर्फ अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन का अंग बन गया – श्वास की तरह, उपस्थिति की तरह, कला की तरह।
डॉ. भरत ठाकुर ने कहा, “शांति कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे आप प्राप्त करते हैं, बल्कि यह वह है जिसे आप याद करते हैं। मन को शांत करने की ज़रूरत नहीं, बस अविचलित छोड़ दें। और इसी शांति में, हर संभावना का द्वार खुलता है।”
यह कोई साधारण शिविर नहीं, बल्कि एक आंतरिक तीर्थयात्रा थी – अपने मूल में लौटने की यात्रा। प्रतिदिन गंगा तट पर सूर्योदय ध्यान, आर्टिस्टिक योग सत्र, हवन, मंदिर दर्शन, प्रकृति के बीच समय और आत्मीय संवाद के माध्यम से प्रतिभागियों ने ‘शून्य’ को खालीपन नहीं, बल्कि ज्ञान और चेतना की परिपूर्णता के रूप में अनुभव किया।
राजकुमारी मोहिना कुमारी सिंह (प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना एवं उत्तराखंड के संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज की पुत्रवधू) ने डॉ. भरत ठाकुर के साथ ‘गति और मौन के संगम’ पर चर्चा की। मोहिना ने कहा, “नृत्य कोई प्रदर्शन नहीं, बल्कि गति में दिव्यता का अनुभव है। जब यह शांति से जुड़ा होता है, तो हर कदम पवित्र हो जाता है।”
जोधपुर राजपरिवार की रानी श्वेता कुमारी ने डॉ. ठाकुर के साथ ‘जड़ों की ओर लौटने’ पर संवाद किया। श्वेता जी ने कहा, “शांति इस धरती की भाषा है। जब हम अपनी जड़ों, अपने पूर्वजों की कहानियों और मौन से जुड़ते हैं, तभी उपचार शुरू होता है।”
आश्रम में पद्म श्री डॉ. सोमा घोष, प्रख्यात हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका एवं भारत की सांस्कृतिक राजदूत, ने एक अविस्मरणीय संगीत सत्र प्रस्तुत किया। उनकी शिव तांडव, ठुमरी, दादरा और खयाल की मनमोहक प्रस्तुति ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। डॉ. घोष ने कहा, “जब संगीत मौन से उत्पन्न होता है, तो वह योग बन जाता है – हर स्वर एक प्रार्थना, स्रोत की ओर लौटती हुई।”