में उत्तराखंड का निराशाजनक प्रदर्शन

-स्वच्छ भारत मिशन के दस साल बाद भी राष्ट्रीय रैंकिंग में एक भी शहर नहीं
-एसडीसी फाउंडेशन ने उत्तराखंड में वेस्ट मैनेजमेंट कमीशन गठित करने की मांग उठाई

देहरादून । स्वच्छ भारत मिशन के दस वर्ष पूर्ण होने के बाद भी उत्तराखंड एक भी प्रमुख पुरस्कार श्रेणी में स्थान नहीं बना सका है। यह जानकारी आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25 के पुरस्कार समारोह में सामने आई, जहां पूरे देश में साफ सफाई के बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले शहरों को सम्मानित किया गया। उत्तराखंड के लालकुआं नगर को “प्रोमिसिंग स्वच्छ शहर राज्य श्रेणी” में स्थान मिला है किन्तु देहरादून स्थित पर्यावरणीय एक्शन और एडवोकेसी समूह एसडीसी फाउंडेशन ने इसे प्रत्येक राज्य से एक शहर को नामांकित करने की अनिवार्यता के तहत दिया गया प्रतीकात्मक पुरस्कार बताया है, न कि किसी वास्तविक प्रतिस्पर्धी प्रदर्शन का परिणाम।
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने कहा कि यह आत्मचिंतन का अवसर है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य लगातार राष्ट्रीय रैंकिंग में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं, जबकि उत्तराखंड लगातार गायब है। यह किसी एक शहर की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश के सिस्टम की उदासीनता और राजनीतिक एवं प्रशासनिक प्राथमिकता की कमी का परिणाम है। उन्होंन कहा कि स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25 के तहत देशभर के शहरों को पाँच जनसंख्या श्रेणियों में विभाजित कर सम्मानित किया गया जिसमे 10 लाख से अधिक, 3-10 लाख, 50,000-3 लाख, 20,000-50,000 और 20,000 से कम जनसंख्या वाले शहर शामिली हुए। उन्होंने दुख जताया कि जहां इंदौर, सूरत, नोएडा, चंडीगढ़, लखनऊ, उज्जैन, मैसूर, अंबिकापुर, तिरुपति और लोनावाला जैसे कई अन्य शहर लगातार मिसाल पेश कर रहे हैं, वहीं देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, ऋषिकेश, हल्द्वानी और उत्तराखंड के अन्य सभी शहर लगातार सूची से बाहर हैं।
एसडीसी फाउंडेशन, जो पिछले कई वर्षों से स्वच्छ सर्वेक्षण के नतीजों का विश्लेषण उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में कर रहा है ने दीर्घकालिक और संस्थागत सुधारों की अपनी सिफारिशें दोहराईं। अनूप नौटियाल ने कहा की हम बार-बार कह चुके हैं कि दिखावे का प्रयास और फोटो सेशन से उत्तराखंड को कोई लाभ नहीं होगा। यदि हमारे बड़े शहर जो 3 से 10 लाख जनसंख्या की श्रेणी में आते हैं लगातार असफल हो रहे हैं, तो कम से कम राज्य को 50,000-3 लाख, 20,000-50,000 या 20,000 से कम जनसंख्या वाले शहरों में एक मॉडल आदर्श स्वच्छ नगर विकसित करने का गंभीर प्रयास करना चाहिए। इस समन्वय और जवाबदेही के संकट को दूर करने के लिए उन्होंने एक स्वतंत्र ष्वेस्ट मैनेजमेंट कमीशन (कचरा प्रबंधन आयोग)ष् गठित करने की मांग को फिर दोहराया। उन्होंने कहा की समग्र कचरा प्रबंधन किसी एक विभाग का काम नहीं है। इसमें शहरी निकाय, शहरी विकास विभाग, पंचायती राज, वन विभाग, पर्यटन, पेयजल निगम, जल संस्थान और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित कई विभाग शामिल हैं। भारत सरकार ने भी 2016 में प्लास्टिक, ठोस कचरा, ई-कचरा, बायोमेडिकल, खतरनाक और निर्माण व ध्वस्तीकरण कचरे को लेकर छह अलग अलग कानून बनाए थे। अनूप ने कहा की वर्तमान प्रशासनिक ढांचा जिसमें समितियां, मुख्य सचिव, आयुक्त, डीएम, नगर निकाय और अनेकों अधिकारी शामिल हैं वो प्रदेश के 13 जिलों के 95 ब्लॉकों और 53,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले उत्तराखंड में इन सभी छह कचरा धाराओं का समन्वित दैनिक प्रबंधन करने में असमर्थ है। उन्होंने कहा कि राज्य में हर साल 8 से 10 करोड़ तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के आने का अनुमान है, जो आने वाले वर्षों में और बढ़ेगा। अनूप ने मांग की की जब उत्तराखंड राज्य में पलायन आयोग बन सकता है, तो राज्य में वेस्ट मैनेजमेंट कमीशन क्यों नहीं बन सकता? उन्होंने स्पष्ट किया कि यह आयोग स्वतंत्र होना चाहिए, न कि राजनीतिक नियुक्तियों या सेवानिवृत्त अधिकारियों के लिए एक और पदस्थापन का केंद्र। इसकी अगुवाई कचरा प्रबंधन के विशेषज्ञ को दी जानी चाहिए, जिसे राज्य मंत्री या कैबिनेट स्तर की जिम्मेदारी, अधिकार और बजट मिले। अनूप ने दोहराया कि कचरा प्रबंधन कोई हल्का विषय नहीं है। यह उत्तराखंड जैसे पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील राज्य के लिए सबसे जटिल, गंभीर और प्रभावशाली मुद्दों में से एक है। जब तक हम अपनी नीतियों और व्यवस्थाओं में संस्थागत और व्यापक सुधार नहीं लाएंगे, तब तक हमारे शहर और गाँव राष्ट्रीय मानकों से पिछड़ते रहेंगे और आम नागरिकों और पर्यटकों को इसकी कीमत बीमारियों, पर्यावरण क्षरण, आर्थिक अवसरों की कमी और प्रशासनिक उदासीनता के रूप में चुकानी पड़ेगी,” उन्होंने कहा।

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