देहरादून । उत्तराखण्ड की समृद्ध लोक परंपरा और पर्यावरण संरक्षण के संदेश को समर्पित हरेला पर्व के उपलक्ष्य में, सीआईएमएस एंड आर कॉलेज, देहरादून में एक विशेष कार्यक्रम आओ प्रकृति संवारे, हरेला उत्सव मनाएं का आयोजन किया गया। यह आयोजन विद्या भारती उच्च शिक्षा संस्थान उत्तराखण्ड प्रांत, सजग इंडिया एवं सीआईएमएस कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जे.एम.एस. राणा मुख्य अतिथि, प्रो. अनीता रावत, उत्तराखण्ड़ सचिवालय अनुभाग अधिकारी राजीव नयन पांडे, सरस्वती विद्या मंदिर इण्टर कॉलेज चम्बा के प्रधानाचार्य इन्द्रपाल सिंह परमार, सरस्वती विद्या मंदिर मसूरी के प्रधानाचार्य मनोज रयाल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। इस दौरान सभी अतिथियों ने कॉलेज परिसर में वृक्षारोपण किया।
इस अवसर पर सी.आई.एम.एस एंड यूआईएचएमटी ग्रुप ऑफ कॉलेज एव सजग इंडिया के अध्यक्ष एडवोकेट ललित मोहन जोशी ने सभी अतिथियों का सौहार्दपूर्ण स्वागत किया और हरेला के आयोजन एवं पर्यावरणीय महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने उत्तराखण्ड़ में विशेष रूप से कुमाऊं क्षेत्र में पारम्परिक तौर पर मनाए जाने वाले हरेला पर्व के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हरेला से 9 दिन पूर्व 5 या 7 अनाजों को रिंगाल की टोकरी अथवा पत्तों से बनाई गए टोकरियों में बोया जाता है। और सुबह ताजे पानी से इसे सींचा जाता है। इसे धूप की सीधी रोशनी से भी बचाया जाता है, और 9वें दिन गुडाई करने के बाद 10वें दिन इसकी पूजा करने के बाद हरेले को काटकर चढ़ाया जाता है। फिर घर के बड़े-बुजुर्ग सभी के शिरोधार्य करते हुए अपना आशीर्वाद देते हैं। उन्होंने कहा कि आज के युग में प्रकृति से जुड़ाव और हरियाली का संरक्षण समय की आवश्यकता है, और हरेला इस दिशा में जनजागृति का पर्व बन सकता है। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जे. एम.एस. राणा ने कहा कि हरेला पर्व केवल परंपरा नहीं, यह चेतना का उत्सव है, जो गांव, घर और प्रकृति कृ तीनों के बीच एक जीवंत संवाद कायम करता है। उन्होंने कहा कि इस पर्व की जड़ें बहुत गहराई तक हैं, 86 के दशक में हरेला की चेतना को वैज्ञानिक आधार देने तक का सफर इस पर्व को एक लोकदृआंदोलन बना देता है। उन्होंने स्मरण किया कि कैसे 1986 में शुरू हुई हरेला की यह संगठित चेतना केवल वृक्षारोपण तक सीमित नहीं रही, बल्कि जल संरक्षण, प्राकृतिक प्रेम, और सामुदायिक सहभागिता का बड़ा आधार बनी।
प्रो. राणा ने कहा कि,ष्हरेला केवल पेड़ लगाने का कार्यक्रम नहीं है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य और प्रकृति के बीच का रिश्ता मज़बूत होता है।ष् उन्होंने चेताया कि केवल कल्पना या भावुकता से नहीं, बल्कि विज्ञान, लोकविज्ञान और सामूहिक सहभागिता से हमें पर्यावरण संरक्षण को अपनाना होगा। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि हरेला जैसे पर्वों से समाज के भीतर संवेदनशीलता और पर्यावरणीय नागरिकता विकसित होनी चाहिए। ष्जो चेतना हमने वर्षों पहले जलाई थी, आज वह पूरे उत्तर भारत में फैली है कृ यह सिर्फ पर्व नहीं, एक आंदोलन बन चुका है। उन्होंने कहा, ष्आने वाली पीढ़ियों को हरेला के माध्यम से प्रकृति से जोड़ने की ज़रूरत है। यही भारत की सांस्कृतिक प्रतिभा और चेतना का असली स्वरूप है।ष् और सभी प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे हरेला को केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक सतत सामाजिक ज़िम्मेदारी के रूप में स्वीकार करें।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रोफेसर (डॉ.) अनीता रावत ने कहा कि हम सभी को पर्यावरण के संरक्षण के लिए गंभीरता के साथ मिलकर कार्य करने की जरूरत है। भारतीय ज्ञान विज्ञान परंपरा और संस्कृति में प्रकृति के पांच महाभूतों को जीवन के लिए बहुत आवश्यक माना गया है। हरेला पर्व प्रकृति को समर्पित लोक पर्व है, हम सभी को पौधारोपण करने के साथ-साथ उसकी वर्ष भर देखभाल भी करनी चाहिए। कार्यक्रम में सीआईएमएस कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा हरेला एवं पर्यावरण संरक्षण के ऊपर विभिन्न कविताएं एवं भाषण प्रस्तुत किए। इस दौरान सी.आई.एम.एस एंड यूआईएचएमटी ग्रुप ऑफ कॉलेज के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय जोशी, प्रशासनिक अधिकारी (रिटा.) मेजर ललित सामंत, उत्तराखण्ड़ डिफेंस एकेडमी के डायरेक्टर (रिटा.) कर्नल नेगी, सीआईएमएस कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल के प्रधानाचार्य डॉ. आर. एन. सिंह, डॉ. अंजना गुंसाई, मनमोहन, गणेश कांडपाल, मनोज सामंत आदि शिक्षक एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
