आया बारिशों का मौसम …….

                          लीजिए बारिशों का आनंद मगर बचें आंत्रशोथ व मौसमी बीमारियों  से ।

भीषण गर्मी के बाद जब बारिश की रिमझिम फुहारें पड़ती हैं तो तन और मन दोनों को भारी सुकून मिलता है और गर्मी में शरीर पर उभर आई घमौरियां भी खुद ब खुद हटने लगती हैं।  इतना ही नहीं बारिश में नहाने का तो मजा ही अलग है । प्रकृति की सौगात बनकर आती है आषाढ़ की पहली बारिश ।  एक तरह से गर्मी से त्रस्त मनुष्यों एवं दूसरे जीवों की  गुहार से ऐसा लगता है जैसे बादलों का मन पसीज कर नीचे आ गया हो । बेशक बारिश का मौसम सुहावना होता है खास तौर पर बच्चों के लिए तो मस्ती का मौसम है बारिश का मौसम।  लेकिन कई बार बरसात का मौसम अपने साथ कई मुसीबतें  लेकर आता है। एक तो गर्मी व उमस की मार, ऊपर से चटपटा खाने का मन और पेट के खराब होने का पूरा चांस । हरी सब्जियां यूँ तो बहुत सारी आने लगती हैं मगर कीमत व स्वाद की दृष्टि से कम ही रूचिकर लगती है। ऊपर से संक्रमण का डर हमेशा बना रहता है। ऐसे में मन जब अनायास ही चटपटी, बाजारू चाट पकौड़ियों, शीतल पेय, शर्बतों, लस्सियों या जलजीरा वालों की तरफ खिंचा चला जाता है कटे हुए टमाटर व तरबूज तथा आईस्क्रीम पर तो बच्चे टूट ही पड़ते हैं तब  यही आकर्षण अक्सर आंत्रशोथ या पेचिश का कारण बन जाता है। गन्ने का रस तो एक प्रकार से स्वास्थ्य का दुश्मन ही साबित होता है बारिश के मौसम में और तरबूज तथा खरबूजा का स्वाद बिगड़ जाता है तथा यह फल स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो जाते हैं इतना ही नहीं दही जैसी पौष्टिक वस्तु भी बारिश के मौसम में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाती है ।

 बाजार में ठेलों या दुकान से कटे हुए फल, खुले खाद्य पदार्थ, बिना धुला सलाद व हरी सब्जियां, बिना हाथ धोए कुछ भी खा लेना, बासी और आठ घण्टे से ज्यादा का बना भोजन, बिना फ्रिज की रखी लस्सी, शर्बत,, बिना फिल्टर किया पानी, मक्खियों से लथपथ खुले में रखे चाट-पकौड़े, मिठाईयां, लोकल आईसक्रीम व शीतलपेय ही नहीं, गन्ने के रस जैसे प्राकृतिक किंतु असुरक्षित पेय भी आंत्रशोथ के कारण बनते है। आंत्रशोथ यानी आंतों में संक्रमण होने पर पेट में पहले दर्द या मरोड़ के साथ दस्त या पेचिश शुरू होते है। शुरू में ध्यान न दिए जाने या लापरवाही अथवा अच्छे डॉक्टर के पास जाने से बचने की आदत के चलते दस्तों को संख्या बढ़ सकती है जिससे शरीर में पानी की कमी तक हो जाती है। अधिक लापरवाही में ग्लूकोज लगवाने या कई बार तो मृत्यु तक का खतरा बन जाता है। उपचार से सावधानी भली के सिद्धांत पर चला जाए तो आंत्रशोथ या पेचिश से आसानी से बचा जा सकता है बस नीचे लिखो थोडे. सी बातें ध्यान में रखें व अमल में लाएं:- कटे हुए, बासी, गले सड़े फल व सब्जी कदापि प्रयोग में न लायें। फल व सब्जी ताजे व अच्छे ही इस्तेमाल करें।

 ठण्डे व बासी भोजन से बचें। ताजा बना हुआ भोजन ही प्रयोग में लाएं।

  • बाजारू पेयों जैसे बेल का रस, गन्ने का रस, लोकल ड्रिंक, सॉफ्ट ड्रिंक्स के प्रयोग से यथासंभव बचें। घर पर बने देसी या अच्छी कंपनी के नए पैक पेय हो प्रयोग करें। बच्चों को मुंह में हाथ डालने, अंगूठा चूसने, दांत कुतरने व बिना हाथ धोए कुछ भी खाने से रोकें। यदि आपको किसी चीज के खाने से अक्सर दस्त की शिकायत हो जाती हो यानी एलर्जी हो तो उसके सेवन से परहेज करें।भोजन के बाद व दिन में थोडे-थोडे अंतराल के बाद ताजा, स्वच्छ व फिल्टर पानी पीते रहें। जल अल्पता को रोकने हेतु ग्लूकोज, इलेक्ट्रॉल, नींबू पानी, आम का पना या चीनी नमक का बना ओ. आर. एस घोल रोगी को अवश्य देते रहें।तली भुनी व मसालेदार वस्तुओं के सेवन से यथासंभव परहेज करें। यदि कभी आवश्यक रूप से सेवन करना पड़े तो अच्छी दुकान से खरीदें या घर बनाकर खाएं। बच्चों को दाल का पानी, चावल मांड व दही भी दी जा सकती है, मगर ध्यान रहे, ये भी स्वच्छ, शुद्ध व ताजे ही हों।बर्तनों को साफ पानी में धोएं। ऐसे में उबला हुआ पानी ही पिएं। पानी को एक बड़े बर्तन में उबालकर ठंडा कर लें। फिर इसे किसी ढक्कन वाले स्वच्छ बर्तन में भरकर रख लें।खाने-पीने के बर्तन भी एक दम साफ सुथरे एवं कीटाणु रहित होने चाहिएं। बस, ये जरा-जरा सी सावधानियां ही आपकी पेचिश, डिहाइड्रेशन तथा आंत्रशोथ से रक्षा करेंगी।  और हां, यदि इन सावधानियों के बावजूद भी आप शिकार बन ही जाएं तो तुरंत किसी अच्छे अथवा अपने फैमिली डॉक्टर के पास जाकर जरूर दिखाएं ताकि हालत न बिगड़े और हां खाना पीना बिल्कुल न छोड़ें ।  खाने में हल्की या  उबली हुई चीजें लें । एक बार फिर,कच्ची सब्जी, सलाद या फलों से परहेज करें । नारियल का पानी, दाल अथवा उबले हुए चावल का पानी पीते रहें । इलेक्ट्रॉल , ग्लुकोज़ या ओ आर एस का तथा दही, नींबू पानी, शिकंजी आदि तरल पदार्थ पर्याप्त मात्रा में लेते रहें इससे डिहाईड्रेशन नहीं होगा । इन सबसे बढ़कर अगर ज़रा भी हालत बिगड़ती लगे तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें और हस्पताल में भी एडमिट होने से न बचें न डरें और न ही देर करें । मन की बारिश में स्वास्थ्य को खतरा हो जाता है लेकिन थोड़ी सी सावधानी के साथ यदि बारिश के मौसम में रहा जाए तो फिर यह बारिश जीवन में आनंद भी भर देती है तभी तो फिल्मी गानों तक में गीतकारों ने गुनगुनाया है लो आया बारिशों का मौसम ।                                        –डॉ घनश्याम बादल 

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